Thursday, June 14, 2018

Parchhai....

ना आॅंसू दिखते हैं ना हॅंसी दिखती हैं
भीड में हर किसीकी सिर्फ परछाई दिखती हैं

अपना कहलानेवाले सब जैसे गुम हो गए हैं
साथ में बटोरी सारी यादें बिखर गए हैं

यूॅं तो हर कोई जाना पहचानासा लगता हैं
ढूंढने पर मगर हर चेहरा पराया बन जाता हैं

वक्त की रफ्तार से सब दौडते जा रहे हैं
रिश्तोंकी अहमियत को कुचले जा रहे हैं

सही-गलत की गुत्थी सुलझती ही नही हैं
दिल की उलझन बिगडती जा रही हैं

कश्मकश मन की बढती ही जा रही हैं
आईना भी अब पहचाननेसे इन्कार कर रहा हैं

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